गुलाब
कि काँटों से लड़कर इक गुलाब, तेरे पास लाया हूँ।
मेरे सपनों की दुनिया में अकसर, मै तुम्हे पाया हूँ।
रूठ न जाओ कहीं किसी बात पे मुझसे, ऐ सनम,
लब़ पर सजा कर ज़रा सी हँसी, तेरे पास आया हूँ।।
– लोकनाथ ताण्डेय ‘मधुर’
कि काँटों से लड़कर इक गुलाब, तेरे पास लाया हूँ।
मेरे सपनों की दुनिया में अकसर, मै तुम्हे पाया हूँ।
रूठ न जाओ कहीं किसी बात पे मुझसे, ऐ सनम,
लब़ पर सजा कर ज़रा सी हँसी, तेरे पास आया हूँ।।
– लोकनाथ ताण्डेय ‘मधुर’