गुलाब
प्रतीक रहा मन की कोमलता का ,
भावनाओं के प्रस्फुटन का,
मन की नम भूमि पर ,
अँकुआती
अभिव्यक्ति का।
बना प्रतीक भिन्नता का
कभी सुख-समृद्धि का।
पूंजीवादी सभ्यता का ।
कवि निराला ने दिया
ओहदा प्रतीकता का।
कोमल कली तेरी
नन्हीं सी गुड़िया
ज्यों आँगन में खेले।
या फिर नवयौवना
लदी यौवन भार से ।
पर भूल गया तू
अकूत उस वैभव को
बन बैठा पुजारी
विलासिता का
सुगंध तेरी नहीं लगती
नवयौवन की मादकता
तेरा आब नहीं देता
आभास अब मुझको
उन खिलती कलियों
के कपोलों की लालिमा का
बस ,रह गया है अब तू
प्रतीक बन के
भ्रष्टाचार का ।
रे गुलाब..!!
पाखी