गुलमोहर तुम हो शहजादे
गुलमोहर तुम हो शहजादे
तुमको मेरी राधे राधे ,
तप्त हवाओं संग खेलते
बने बड़े ही सीधे सादे ।
मस्तक सोहें पुष्प अति सुँदर
रँग है जिनका लाल मनोहर
नहीं झुलसते कड़ी धूप में
कितने मोहक अंदर बाहर ।
तुम सूनी राहों की शोभा
तुमने सबका ही मन मोहा
सहनशक्ति में प्रथम तुम्ही हो
सबने तुम्हारा माना लोहा ।
तरु जगत का श्रंगार हो तुम
उसकी अलग पहचान हो तुम
बनकर सोनी लाल चुनरिया
सजा रहे आँचल उसका तुम ।
डॉ रीता
आया नगर,नई दिल्ली- 47