गुरु
कुण्डलिया
गुरु
गुरु हीरा गुण खान है ,लूट सके तो लूट।
नाता बड़ा महान है ,बाकी रिश्ते झूठ।।
बाकी रिश्ते झूठ, धरो चरणों में माथा।
पकड़ शिष्य का हाथ, बनता विद्या का दाता।।
लेकर भौतिक ज्ञान ,करले नवजीवन शुरू।
होता जग में मान ,जो होय संस्कारिक गुरु ।।
माता-पितु सबसे बड़े, रख पद पंकज माथ ।
सुख- दुख में रहते खड़े ,रखे सदा सिर हाथ।।
रखे सदा सिर हार, बाल जीवन मुस्काए।
देकर प्रेमिल साथ ,पथ पर चलना सिखाए।।
मां-बाप मित्र समान, हृदय पुलकित हो जाता।
मत करना अपमान, जगतगुरु पहली माता।।
जो भवसागर तार दे ,मिले न संत महान।
जीवन खोट तराश दे ,वह गुरु बहुत सुजान ।।
वह गुरु बहुत सुजान ,बुद्धि निर्मल कर जावे।
पवित्र बांटते ज्ञान ,मैल भीतर का धोवे।।
शुद्ध हृदय हो मनुज , परहित काम करता वो।
जन्म भले हो दनुज , बुद्ध बन कर जीता जो ।।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर ( हि० प्र०)