गुरु शिष्य का है भाग्य विधाता
गुरु शिष्य का है भाग्य विधाता
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जग में सबसे श्रेष्ठ है यह नाता
गुरु शिष्य का है भाग्य विधाता
भटके हुए राह के राहगीरों को
सीधी और सही राहें हैं दिखाता
कच्ची मिट्टी के पड़े ढ़ेर को वह
सुन्दर आकार में संवर सजाता
मिट्टी के माधो से पास हैं आते
मन अंदर ज्ञानप्रकाश करवाता
अंगुली पकड़ के निज हाथों में
पढ़ना लिए लिखना है सिखाता
कुसंगतियों में धंसे पड़े शिक्षार्थी
सत्य मार्ग दर्शन रहता करवाता
व्यसनों के आदी अगर हो जाएं
शिक्षाओं से छुटकारा है दिलाता
शिक्षक उम्रभर ही शिक्षक रहता
शिष्य उच्च सौपानों पर पहुंचाता
मनसीरत आज जहाँ पर खड़ा है
शिक्षकों के सदा गुण रहता गाता
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)