‘गुरु’ (शिक्षक दिवस पर विशेष)
‘गुरु’
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नित्य जाओ , घर से गुरुजन तक;
ज्ञान पाओ,बचपन से यौवन तक।
अच्छे शिष्य बनो , पूरे जीवन तक;
सदा शीश झुकाओ,गुरुकदम तक।
माता-पिता से मिले , घर का ज्ञान;
गुरुजन भी देते सदा, अच्छा ज्ञान।
‘गुरु’ हमेशा ही ज्ञान की खान होते,
‘गुरु’ जीवन में , सबसे महान होते।
हर शिष्य की यही, शान बान होते;
अज्ञानी हेतु, ‘गुरु’जीवन दान होते।
जो सदा,’गुरु’ की माने हर ही बात;
खुशियां होती, हमेशा उसके साथ।
‘गुरु’, जीवन का गूढ़ रहस्य बताते;
ये बच्चों के आलस को दूर भागते।
हर एक बच्चा होता, उनको खास;
बच्चों को भी होता, इनपर विश्वास।
जीवन में, सदा अनुशासन जरूरी;
‘गुरु’ही होते हैं,अनुशासन की धुरी।
जब भी कर्म , लगे कभी मजबूरी;
गुरुज्ञान कराता , सारे कर्तव्य पूरी।
‘गुरु’ का जो कोई भी,करे अपमान;
होता नहीं कभी , उसका कल्याण।
‘गुरु’ ही, हर लघु को उत्तम बनाते;
हर मनु को भी ये , महत्तम बनाते।
‘गुरु’ ही, अब शिक्षक भी कहलाते;
5 सितंबर , ‘शिक्षक दिवस’ मनाते।
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……..✍️पंकज कर्ण
…………..कटिहार।।