गुरु महिमा
?गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई !?
मैं कंठ तुम ध्वनि हो
मैं रज तुम जमी हो।
मैं दीप तुम हो बाती
तुमसे ही मैं आलोकित ।
तुम उच्च हिम शिखर हो
मैं मात्र उसका कण हूं ।
तुम दुग्ध धरा समंदर
मैं मात्र एक लहर हूं ।
तुम पूरी ज्ञान गंगा
मैं प्यासा एक पथिक हूं ।
तुम गगरी हो छलकती
मैं रिक्त पात्र लिए हूं ।
मात्र यह निवेदन
तुम दीप जाले रखना ।
आशीष की अभिलाषा
मैं शिष्य हूं तुम्हारा ।
गुरूज्ञान की महिमा
हम सब ही जानते हैं ।
गुरूज्ञान साथ हो जब
पथ पल में बन जाते हैं ।
गुरू शिष्य का ये रिश्ता
सदैव ही रहेगा ।
धरती के बाद भी यह
आलोकित रहेगा ।
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