गुरुर
तुझे शोभा देता है इतना बेशुमार गुरुर नही ,
इंसान ही है ना तू आखिर फरिश्ता तो नही।
ना साथ कुछ लाया था,ना लेकर जाना है तुझे ,
खाली हाथ आया था खाली हाथ जाना है तुझे।
तू एक रूह है किराए के मकान में रह रही है ,
तेरा नही है यहां का कुछ यूंही भ्रमित हो रही है ।
तेरे माता पिता ने पाला,शिक्षा गुरुओ ने दी तुझे ,
और मृत्यु उपरांत तेरी ही संतान फूंकेगी तुझे ।
अर्थात बचपन से मरण तक तू औरों पर निर्भर है ,
तू है क्या ? जिसका तुझे इतना जायदा गुरुर है ।
यह रुपए ,पैसे धन दौलत, ऐशो इशरत क्या तेरा है ?
सब कुछ यही तो रह जायेगा बता फिर तेरा क्या है ?
इस माया को अपना समझना तेरी महामूर्खता है ,
उस पर इनके लिए गुरुर करना तेरी बड़ी खता है ।
छू कर देख कल्पना में अपनी ही चिता भस्म को ,
ढूढने से भी ना मिलेगा इनमें तेरा गुरुर तुझ को ।
तेरा जीवन नश्वर है बिल्कुल पानी के बुलबुले सा ,
छोड़ दे गुरुर अभी भी बन जा एकदम सरल सा ।
तू मिट्टी का पुतला है रे! मिट्टी में ही समा जायेगा।
ऊपर जन्नत में भी सिर्फ तेरा सुकर्म साथ जाएगा।
ये रूप रंग और जवानी भी तेरी खाक हो जाएगी ,
बस तेरे सद्गुण ,तेरी नेकी ही तुझे मुक्ति दिलाएगी।
इसीलिए गर तू छोड़ देगा गुरुर तो फायदे में रहेगा,
ईश्वर द्वारा तेरा नाम फिर फरिश्तों में गिना जाएगा।