गुरुपद
एक रुपये की माचिस
दस रुपये की धूपबत्ती
दूजे स्थापित हो
अराध्य देव की मूर्ति !
हों न भले कोई संस्कार
चलेगा जरूर व्यापार.
अनपढ़ भी चलेगा.
मंत्र पढ़ने वाला तो,
शिक्षित खुद आयेगा.
हवा में तीर छोड़ने वाले
पीएचडी को झुका लेगा
मत ले पंगे महेन्द्र
सर्वस्व मिट जायेगा.
कहकर ऐसे शब्द
गुलाम तुझे बनायेगा.
महेन्द्र गुरुवाणी, गुरुपद
तेरी चेतना, समझ तेरी.
सतत अडिग, अटल उकाब
बन तेरे वर्चस्व को शाश्वत से
पहचान करायेगा.