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8 Aug 2024 · 1 min read

गुम हो जाते हैं साथ चलने वाले, क़दम भी कुछ ऐसे।

गुम हो जाते हैं साथ चलने वाले, क़दम भी कुछ ऐसे,
कि बारिशों ने कभी छुआ हीं ना हो, सूखे पत्तों को जैसे।
निशानियां बनायीं भीं थीं तो, सागर के किनारे ढूंढें उसे कैसे,
कि दावे किये थे लहरों ने, और वो समंदर हुए जैसे।
वो कहानियां ख़्वाहिशों की आयी थी, गुलमोहरों के हिस्से,
हुई पतझड़ों की जो शिरक़त, तो अब बिखरे हैं उनके किस्से।
होश रहता है पर, हर पल लड़ते हैं एहसासों की बेहोशी से,
कि बातें होती हैं अब बस, आँखों में घुली खामोशी से।
ख़्वाबों का एक आशियाँ, जाने हमने भी बना लिया कैसे,
खौफ टकराई है अब हकीकत से, और आई है मेरे हीं आँखों के हिस्से।
साँसें लेती हैं अब तो खुशियां, बस तस्वीरों के सहारे से,
भागूं कितना भी तेरे पीछे, पर परछाईयों को पकड़ूँ भी तो कैसे।
मेरी दुआएं सुनकर डरते हैं, अब तो सितारे भी टूटने से,
कि कैसे जोड़ें उन लकीरों को, जो बनकर राख उड़ चुके हैं किस्मत से।

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