गुमनाम राही
मैं हूं एक गुमनाम सा राही
न जाने इस मजमा में कहा गुम हूं
पथ में कांटे ही कांटे बिछे हैं सारे
इन कांटों को चुग चुग बढ़ना होगा
दुष्करो दुस्साध्यो से लड़ना होगा
हर हाल में शिखर तक पहुंचना होगा…
पल – पल अवसर बीत रही है
पल – पल हयात कट रही है
हे मानव ! फिर भी तू निश्चित क्यों है
क्या भय तुम्हें न काशीवास से हैं
क्या तुम्हें मालूम नहीं
ईश्वर तुझे भेजा है क्यो ?
अपने उस ध्येय को याद कर
और निकल चल इस तम से तू…
हम मानव की जीवन क्षणिक है
कब है कब न किसे मालूम ?
जब उतर गया तू इस रण भूमि में
तो निज की जय करते ही जा…
मैं हूं एक गुमनाम सा राही
न जाने इस मजमा में कहा गुम हूं