गुब्बारे वाले बाबा
कहानी – गुब्बारे वाले बाबा
वो हल्की-हल्की ठंडी हवा में सुबह का समय था, जब सूर्य की किरणें धीरे-धीरे धरती पर अपनी गर्माहट बिखेर रही थीं। एक छोटे से कस्बे के मोहल्ले के कोने में, एक बूढ़ा आदमी, जिसकी झुर्रियों से भरा चेहरा और धुंधली आँखें उसके अनुभवों की कहानी बयां करती थीं, गुब्बारे बेचने का काम करता था। वह बूढ़ा अपने टूटे-फूटे लेकिन रंग-बिरंगे गुब्बारों से भरे बास्केट को सिर पर रखे हुए अपने पसंदीदा जगह पर जाता, जहाँ बच्चे उसकी राह देखा करते थे। उसका नाम था ‘गुब्बारे वाले बाबा’, लेकिन बच्चों के लिए वो बस ‘बाबा’ थे। उसकी उम्र का अंदाज़ा किसी को नहीं था, लेकिन उसकी आँखों में जो चमक थी, वह उसके हृदय में बसी मासूमियत की गवाही देती थी।
एक दिन, बाबा ने देखा कि एक छोटी सी पाँच साल की बच्ची, जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा था, उसके गुब्बारों की तरफ देख रही थी। उसकी आँखें बड़ी-बड़ी और चेहरे पर मासूमियत थी, लेकिन उसके चेहरे पर कुछ अनजाना दुःख भी छिपा हुआ था। बाबा ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहा, “आओ बेटी, तुम्हें कौन सा गुब्बारा चाहिए?”
लड़की ने अपनी बड़ी आँखों से बाबा की तरफ देखा, फिर धीरे-धीरे उसके पास आई। “मुझे वो नीला वाला गुब्बारा चाहिए,” उसने हिचकिचाते हुए कहा।
बाबा ने नीला गुब्बारा उसके हाथों में थमाया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। “तुम्हारा नाम क्या है, बेटी?” उसने पूछा।
“मेरा नाम परी है,” लड़की ने धीरे से कहा।
परी हर रोज़ उस जगह पर आकर बाबा से मिलती, और बाबा उसे एक नया गुब्बारा दे देते। परी ने कभी भी गुब्बारे के लिए पैसे नहीं दिए, और बाबा ने कभी उनसे पैसे मांगे भी नहीं। वो बस उसके चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते थे।
परी का मासूम चेहरा और उसकी बातों ने बाबा के दिल को छू लिया था। बाबा खुद भी अकेला था, और परी में उन्हें अपनी खोई हुई बेटी की झलक दिखती थी। परी के साथ बिताए गए ये कुछ पल उनके लिए जीवन का सबसे सुंदर हिस्सा बन गए थे।
एक दिन बाबा ने परी से पूछा, “बेटी, तुम रोज़ अकेले यहाँ क्यों आती हो? तुम्हारे मम्मी-पापा कहाँ हैं?”
परी का चेहरा उदास हो गया। उसने धीरे-से कहा, “माँ तो अब भगवान के पास चली गईं, और पापा हमेशा काम में व्यस्त रहते हैं। मैं अकेली रहती हूँ, बाबा।”
बाबा के दिल में एक चुभन सी हुई। वे समझ गए कि ये नन्ही बच्ची अकेलापन महसूस करती है। उन्होंने परी को अपनी गोद में बिठाया और कहा, “बेटी, तुम कभी भी अकेली नहीं हो। मैं हूँ ना, तुम्हारा बाबा।”
परी बाबा से और भी ज्यादा जुड़ गई। बाबा ने उसके लिए छोटी-छोटी कहानियाँ सुनानी शुरू कीं। कभी वो गुब्बारों से परी के लिए जानवर बनाते, तो कभी उसे अपनी पुरानी यादों के किस्से सुनाते। परी हर रोज़ अपने बाबा के साथ अपना समय बिताने लगी।
एक दिन, बाबा ने देखा कि परी के पास उसका गुब्बारा नहीं था। उन्होंने उससे पूछा, “परी, तुम्हारा गुब्बारा कहाँ है?” परी ने उदासी से कहा, “मैंने उसे उड़ा दिया, बाबा। मैंने भगवान से माँ को वापस लाने की प्रार्थना की और गुब्बारा आसमान में छोड़ दिया।”
बाबा का दिल भर आया। उन्होंने परी को गले से लगा लिया। उनकी आँखों में आँसू थे, लेकिन उन्होंने उसे दिखाया नहीं। उन्होंने बस धीरे से कहा, “भगवान तुम्हारी माँ को देख रहे हैं, बेटी। और वो हमेशा तुम्हारे साथ हैं।”
समय बीतता गया। एक दिन, बाबा बहुत बीमार पड़ गए। वे बिस्तर से उठ नहीं पा रहे थे। परी रोज़ उनसे मिलने आती, लेकिन अब बाबा के पास उसके लिए गुब्बारे नहीं थे। परी ने बाबा के हाथों को पकड़ कर कहा, “बाबा, आप जल्दी ठीक हो जाइए। मैं आपके बिना क्या करूंगी?”
बाबा ने परी को अपनी कमजोर आवाज़ में कहा, “बेटी, मुझे भगवान के पास जाना है। लेकिन मैं हमेशा तुम्हारे दिल में रहूंगा। जब भी तुम आसमान में गुब्बारे देखोगी, समझ लेना कि मैं वहीं हूँ।”
कुछ दिनों बाद, बाबा इस दुनिया से चले गए। पूरा मोहल्ला शोक में डूब गया। लेकिन सबसे ज्यादा दुखी थी परी। उसने अपने बाबा को खो दिया था।
उस दिन परी ने आखिरी बार बाबा की याद में एक नीला गुब्बारा आसमान में छोड़ा। उसके छोटे-छोटे हाथों से गुब्बारा उड़ता गया, और परी की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने आसमान की तरफ देखा और धीरे से कहा, “बाबा, मुझे आपकी बहुत याद आएगी।”
गुब्बारा उड़ते-उड़ते बादलों में खो गया। परी ने अपने दिल में बाबा की यादों को संजो लिया। वो जानती थी कि बाबा हमेशा उसके साथ रहेंगे, चाहे वो किसी भी रूप में हों।
वो गुब्बारे वाला बाबा, जिसने अपनी जिंदगी के आखिरी दिन एक छोटी बच्ची के चेहरे पर मुस्कान लाने में बिता दिए, अब उस बच्ची की यादों में हमेशा के लिए बस गया था। परी का दिल अब भी कभी-कभी बाबा की याद में पिघलता था, लेकिन वो जानती थी कि वो कभी भी अकेली नहीं थी। बाबा हमेशा उसके दिल में ज़िंदा रहेंगे, उसकी ख़ुशियों और दुःख में, एक अदृश्य साथी की तरह।
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