गुब्बारा
रंग बिरंगी गुब्बारा वाला,
बेचने आया शहर में ।
कैसे कहूं डर लगता था
मम्मी से घर में ।
मन ही मन सोचा था मैने
गुब्बारा लाऊ घर में।
तब तक मेरा भाई आया
चले हो किस डगर में ।
शर्म के मारे संकुचित हुआ
क्या हो गया घर में
लज्जा खाकर सो गया
जाकर दोपहर में।
शाम हुयी पापा आये
बोले क्यूं हो डर में ।
बता दिया हिम्मत से मैने
गुब्बारा दिला दो शहर में ।
अनिल “आदर्श”