गुफ्तगू
गुफ्तगू की है आज उन खोये खवाबों से,
फुसलाया है आरज़ू को ख़ामोशी से,
अनजानी राहों से फिर पूछीं राहें,
ताकि फिर पा सकूँ मंजिल उन टूटते हौसलों से!
ताकि फिर पा सकूँ मंजिल उन टूटते हौसलों से
गुफ्तगू की है आज उन खोये खवाबों से,
फुसलाया है आरज़ू को ख़ामोशी से,
अनजानी राहों से फिर पूछीं राहें,
ताकि फिर पा सकूँ मंजिल उन टूटते हौसलों से!
ताकि फिर पा सकूँ मंजिल उन टूटते हौसलों से