गुफ्तगू वो रात की
गुफ्तगू वो रात की
पहली मुलाकात की
छुअन वो हवाओं की
मधुर तेरे साथ की
बेसाख्ता पुकारतीं रहीं
मुझे वो एक आस सी
वो वादियाँ गुलाब की
मोहब्बतों की छाँव सी
मस्त रात चाँद की
ख्वाब औ सबाब की
मुझको ख्वाब में मिली
हुस्न परी जमाल की
आह क्या अँदाज था
गालों पर गुलाब था
खुश्बूओं से घिरी हुई
कली वो एक रात की
उफ्फ क्या गजब वो थी
नहा कर निकल रही
रोशनी हिजाब की
निखर गई सँवर गई
सूरत ए आफताब की
हसीन जादुई अजब
था वो मंजर दिलनशीं
जब वो मेरे साथ थी।
साँसों में रची बसी
मोहब्बतों की वो चाह सी।
निधि भार्गव।