गुप्त वंश के ब्राह्मण शासक – एक अवलोकन
गुप्त वंश के शासक और ब्राह्मण –
एक समीक्षा ( आप सभी सुहृदजनों के सुझाव सादर आमंत्रित हैं )
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प्रभावती गुप्त, जो चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी, ने अपने पूना ताम्र-पत्र में अपने को ‘धारण-गोत्र’ का बताया है ।
यह गोत्र उसके पिता का था क्योंकि उसका पति वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय विष्णुवृद्धि गोत्र का ब्राह्मण थे ।
वास्तविकता यह है कि ‘गुप्त’ नाम इस वंश के संस्थापक का था और सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त प्रथम ने इसे अपने नाम के अन्त में प्रयुक्त किया था ।
कालान्तर में सभी राजाओं ने इसका अनुकरण किया । पुनश्च ‘गुप्त’ शब्द धारण करना केवल वैश्य वर्ण के लोगों का ही एकाधिकार नहीं था । प्राचीन भारतीय साहित्य से हमें अनेक नाम ऐसे मिलते हैं जो यद्यपि वैश्य नहीं थे तथापि उन्होंने गुप्त शब्द अपने नामान्त में धारण किया था । जैसे – कौटिल्य-विष्णुगुप्त इत्यादि ।
मत्स्यपुराण का कथन केवल नन्दों तक ही सीमित है क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि महानन्दी के बाद शासन करने वाले सभी राजा शूद्र थे । जैसे- मौर्य क्षत्रिय थे, शुंग तथा सातवाहन ब्राह्मण थे । इस विवेचन के आधार पर हम गुप्तों को शूद्र अथवा निम्न जाति का नहीं मान सकते ।
उदाहरण के लिये कौटिल्य, जो एक संस्कृतनिष्ठ महान सत्यनिष्ठ एवं विराट मेधा संपन्न उत्कृष्ट विज्ञानी ब्राह्मण थे , का एक नाम विष्णुगुप्त भी था । इसी प्रकार कुछ अन्य नाम भी प्राचीन साहित्य तथा लेखों से खोजे जा सकते हैं । अत: केवल गुप्त शब्द के ही आधार पर गुप्त राजवंश को वैश्य वर्णान्तर्गत रखना समीचीन नहीं होगा ।
ऐसा लगता है कि उनकी राजनैतिक प्रभुता के कारण ही उन्हें ‘क्षत्रिय’ स्वीकार कर लिया गया था ।
हम गुप्तों को उनके साथ वैवाहिक सम्बन्धाधार पर क्षत्रिय नहीं मान सकते, क्योंकि प्राचीन भारत में अनुलोम विवाह शास्त्रसंगत था जिसके अनुसार कन्या अपने से उच्च वर्ण में ब्याही जाती थी । अत: इन तर्कों के आलोक में गुप्तों को क्षत्रिय मानने का मत ज्यादा सबल नहीं प्रतीत होता ।
गुप्तों की उत्पत्ति के विषय में जितने भी मत दिये गये हैं उनमें उनको ब्राह्मण जाति से सम्बन्धित करने का मत कुछ तर्कसंगत प्रतीत होता है । यहाँ उल्लेखनीय है कि गुप्तवंशी लोग ‘धारण’ गोत्र के थे । इसका उल्लेख चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त ने अपने पूना ताम्रपत्र में किया है ।
यह गोत्र उसके पिता का ही था क्योंकि उसका पति वाकाटक नरेश रुद्रसेन द्वितीय ‘विष्णुवृद्धि’ गोत्र का ब्राह्मण था । यह गोत्र ब्राह्मणों का था । ‘धारण’ का तादात्म्य शुंग शासक अग्निमित्र की प्रधान महिषी धारिणी, जिसका उल्लेख कालिदास के मालविकाग्निमित्र में मिलता है, से स्थापित करते हुये यह प्रतिपादन करते है कि गुप्त लोग उसी के वंशज थे ।
किन्तु इस प्रकार के निष्कर्ष के लिये कोई प्रमाण नहीं है । स्कन्दपुराण में ब्राह्मणों के चौबीस गोत्र गिनाये गये हैं जिनमें बारहवाँ गोत्र ‘धारण’ है । इस ग्रन्थ में धारण गोत्रीय ब्राह्मणों की जिन चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख हुआ है वे सभी गुप्त सम्राटों के व्यवहार एवं चरित्र में देखी जा सकती है ।
✍? आलोक पाण्डेय ‘विश्वबन्धु’