गुनो सार जीवन का…
इधर-उधर मत डोलो।
मन की आँखें खोलो।
तोड़ो न दिल किसी का,
असत्य कभी न बोलो।
रखकर कर्म-तुला पर,
सुख-दुख दोनों तोलो।
प्रायश्चित के जल से,
मल पापों का धो लो।
लौट अतीत की ओर,
बिखरे मनके पो लो।
फैले बेल खुशी की,
बीज नेह के बो लो।
हो शरीक पर-गम में,
पलभर पलक भिगो लो।
करो न बैर किसी से,
सबके अपने हो लो।
बोलो अमृत वाणी,
गरल न मन में घोलो।
गुनो सार जीवन का,
यादें मधुर सँजो लो।
मूंद लो थकी पलकें,
नींद सुकूं की सो लो।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद