गुनगुनाता है कोई।
बन गईं हो एक नगमा गुनगुनाता है कोई।
अपनी ख़ामोशी में भी तुझको बुलाता है कोई।
तुम जहां पर पांव रखती हो वहाँ की धूल को।
अपने हाथों से उठा सर पर लगाता है कोई।
ये मेरी दीवानगी है चाह में तड़पा किया।
चाहने भर से भला कब चांद पाता है कोई।
आके कोई दूर न कर दे तुम्हारे ख़्याल को।
इसलिए बस इस जमाने को भुलाता है कोई।
देखे न तस्वीर तेरी उसकी आँखों में कोई।
इसलिए हर शख्स से आँखे चुराता है कोई।
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कुमारकलहँस,11,05,2021,बोइसर,पालघर।
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