गुजारिश-ए-इंसान
ऐ दौर-ए-जदीद के इंसा, इतनी तो तौफीक किजिए ।
ले तालीम सकुनियत से, औरों को बातालीम किजिए ।।
ना बोलिए हक मे किसी के बुरा, ना बदजुबान होईये।
बस मिलजुल कर एक नया, हिन्दुस्तान किजिए ।।
और गर जुस्तुजू है कि, काम आयें मुल्क और कौम के ।
तो बस यही काम औरों के साथ, हर बार किजिए ।।
कि ना मालूम कब निकल जाये, रूह तेरी ।
तो पहले ही परवाज रूह से, ये काम किजिए ।।
कयोंकि है जाना एक दिन, रोज महशर ।
तो पहले ही इस इम्तिहां से, जम कर मिश्क किजिए ।।
तब ही मियाँ दिखाओगे, मुहँ तुम अपने खुदा को ।
कि अब तो मेरा भी नाम, रफीक-उल-इंसान किजिए ।।
✍✍✍मोहम्मद शारिक अमीन
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