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12 Jun 2023 · 1 min read

गुज़रता शहर

कल रात गुज़रते, शहर से गुज़रा था मैं
कल रात गुज़रते शहर से, गुज़रा था मैं
इन रास्तों को पहचानता हूँ मैं
इस सोए शहर को जानता हूँ मैं
दिन में गुज़रना अब मुश्किल है
इसलिए चाँदनी छानता हूँ मैं

ये दिन का बूढ़ा शहर बड़ा कमज़र्फ हो चुका है
जवान बनने की खवाशिफ में
हर रोज़ एक बुढ़ापा निगल लेता है

रात में मिलता हूँ, अकेले में
ताकि पूछ सकूँ
क्या तू भी स्याह में ही निकलता है
बचपन जहाँ गुज़रा मेरा
क्या चार कंधो का बीड़ा यहीं से ढलता है

टूटी सड़क के किनारे
सूखे दरख़्त के नीचे
हम रोज़ यही बातें करते हैं

एक रोज़ कुल्हाड़ी लेकर आया था कोई
शायद फिर कोई शहर गुज़र गया कहीं
इसी सड़क से गुज़रा था शायद
ठूँठ के पास पड़े
मुरझाए फूलों से रात का पता पूछ रहा था कोई

इस गुज़रते शहर को जानता हूँ में
यहीं से गुज़रा हूँ
इन रास्तों को पहचानता हूँ मैं

संदीप व्यास

Language: Hindi
222 Views
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