गुजर गई कैसे यह जिंदगी, हुआ नहीं कुछ अहसास हमको
गुजर गई कैसे यह जिंदगी, हुआ नहीं कुछ अहसास हमको।
जब वक़्त आया समझने का, हुआ बहुत तब अफसोस हमको।।
गुजर गई कैसे यह जिंदगी———————।।
गुजार दिया मस्ती में बचपन, अनजान से जिंदगी के सफ़र से।
गरीबी से संघर्ष किया जब हमने , हुआ बहुत तब दर्द हमको।।
गुजर गई कैसे यह जिंदगी——————-।।
खोये रहे ख्वाबों में तब हम, जब दौर आया जवानी का।
बहुत कमाया धन पाप करके, जहन्नुम का है अब डर हमको।।
गुजर गई कैसे यह जिंदगी————————।।
बनी जब गृहस्थी यहाँ पर हमारी, हो गये अपने स्वार्थ में गुम।
फंसे रहे मोहमाया में तब हम, अब याद आये मॉं- बाप हमको।।
गुजर गई कैसे यह जिंदगी———————–।।
रहा नहीं अब वह जोश तन में, आ गया है दिल में बुढ़ापा।
दुःखने लगा है बदन दर्द से, जरूरत हुई अब खुदा की हमको।।
गुजर गई कैसे यह जिंदगी———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)