गीत
आते-आते आयेंगे
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दूर देश से आये पंछी
दूर देश जब जायेंगे
पहुँचेगा संदेशा परिजन
आते-आते आयेंगे
करवट बदलेगी तनहाई
घबड़ाया सा डर होगा
छलकी आँखों के आँसू से
रहा नहाया घर होगा
सगे पड़ोसी भी इस दिन ही
मुँह लटकाये आयेंगे
क्या हो गया हुआ यह कैसे
सभी पूछते जायेंगे
दूर देश से आये पंछी
दूर देश जब जायेंगे
चरचा होगी किये करम की
घर-घर आंगन परदे में
गरद उछाली जाएगी कुछ
अच्छे में कुछ गरदे में
सब अपनी डफली पीटेंगे
अपनापन दिखलायेंगे
कुछ अन्तस् के असल दर्द को
पलकों तक ले आयेंगे
दूर देश से आये पंछी
दूर देश जब जायेंगे
गई हाट वह तो खरीदने
अरथी का सामान सभी
जो लेना है जो देना है
दिल के जो अरमान सभी
‘राम नाम सच’ ‘राम नाम सच’
कुछ-कुछ ही दुरायेंगे
कुछ ऐसे होंगे अरथी को
कंधा नहीं लगायेंगे
दूर देश से आये पंछी
दूर देश जब जायेंगे
अंतिम यात्रा की माटी जब
मरघट तक आ जाएगी
‘सहयोगी’ के मुँह में आकर
ममता आग लगाएगी
जलने के भी बाद खोपड़ी
पीट-पीट अजमायेंगे
बची राख को चुगा फूल कह
गंगा में दहवायेंगे
दूर देश से आये पंछी
दूर देश जब जायेंगे
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ