गीत
मैं गीत लिखता रह गया
*********************
टूट सब सपने गये
मैं गीत लिखता रह गया
छूट सब अपने गये मैं
गीत लिखता रह गया
आँधी उठी उस रात की
कितनी भयानक थी
जो मौन व्रत धारण किये
आई अचानक थी
एक झटके में हिमालय
सा सहारा ढह गया
उस रात की हर बात में
कितनी सचाई है
जो साँस गिनती आस ने
रो-रो बताई है
छोड़ देगी साथ सन्निधि
सच सितारा कह गया
कलम अब उद्गीत होकर
गा रही बातें सभी
उस नयन की धार की जो
सह गईं रातें कभी
हाल अपने कागजों से
रो इशारा कह गया
साठ से पहले गई सठिया
सुहानी जिन्दगी
ढूँढने कोई लगी मठिया
सुहानी जिन्दगी
जोड़ना क्या,क्या जुटाना,
है यहाँ क्या रह गया
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ