गीत
गीत को एक नित सजाती है।
ताल को ताल से मिलाती है।।
देख ले आज सुर सधे सब हैं।
बात यह मीत को सुनाती है।।
याद वो आज देख कल की जो।
वह कहाँ भूल आज पाती है।।
पीर के गीत नव रचे नित ही
नीर फिर आँख से बहाती है।।
देखकर राख वो कई सपने।
जीत हित राह फिर बनाती है।।
गीत जो मीत के दिलों का है।
प्रीत के रीत नव दिखाती है।।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली