#गीत :–
#गीत :–
■ नाम हुआ कम अधिक हुई बदनामी है।
【प्रणय प्रभात】
★ जीवन अपना माना
बहुआयामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।
★ सहा गर्भ में जो कुछ वो सब भूल गया,
बाहर आकर के पलने में झूल गया।
शैशव में घुटनों पर रेंगा उठने तक,
लाड़-प्यार संग पोषण पाकर फूल गया।
बाल्यकाल तक उर में अंतर्यामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।
★ वय किशोर, तरुणाई में बस जोश रहा,
भले-बुरे का नहीं तनिक भी होश रहा।
यौवन में बस भोग विलास पसंद रहा,
मनचाहा मिलने पर ही संतोष रहा।
नाम हुआ कम अधिक हुई बदनामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।
★ प्रौढ़ हुए तब तक केवल संचय भाया,
राग-द्वेष, छल-दम्भ मोह ने भरमाया।
वृद्ध देह फिर रोगों का घर-द्वार बनी,
पड़े-पड़े सोचा क्यां खोया क्या पाया?
कल की खूबी आज लगे बस ख़ामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।
★ अब जब जीवन का चौथापन आया है,
साँसों से धड़कन तक संकट छाया है।
किसको झूठ बताए किसको सच बोले,
कालचक्र ने ख़ुद दर्पण दिखलाया है।
चित्त अभी तक लोभी क्रोधी कामी है।
पथदर्शी क्या मानें
बस अनुगामी है।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)