गीत
गीत
क्षेत्रपाल शर्मा
बस एक बार और वृन्दावन बिरज !
जो पहले सिरजा फ़िर वही सिरज !!
उफ़नाती नागिन -सी कालिन्दी
के कू्लों पर तितर -बितर वृक्ष
घटाओं के जालों में, नद
रूठने को मचलता -सा यक्ष
तड़ , मंथर कभी , कभी स्थिर-
लोभ के मानिन्द न धरे धिरज !
जो पहले ……..
आहा से स्वाहा तक पचमेली इन्द्रजाल,
गांठों में सपनों के षटरिपु के भंवरजाल,
सरजक के सुमिरन में कर
समपूरन क्रिया -किरज !
जो पहले……
मोती है आंखों में , सीख ले परख
सच जीवन का खट्टा है मीठा है कड़वा है
कड़ा जी कर ले चख .
जल से जनमा है, न जल से छिरज !
जो पहले ………..
जस जस फल फूल लगे
वृन्त में है बल
तस तस हो वृन्त क्षीण
टूटने को बेकल
बंधा है , पर छिन्न- भिन्न
जीवन का क्षण भंगुर- चिरज .
जो पहले …………!
(: शान्तिपुरम , सासनी गेट , अलीगढ . )