गीत –
आज जब जाने लगी,
घर धूप बनकर छाँव..
याद फिर आने लगे,
पुरवाईयों के गाँव ..
खो गयी है भीड़ में ,
गाँव की वो मस्तियाँ I
भोर को भी जगाती,
बैल की वो घण्टियाँ॥
आज छत से कह गया,
कौए का काँव – काँव…
याद फिर आने लगे ,
पुरवाईयों के गाँव…
पार्कों का शहर के
धूल से शृंगार है।
रूठ कर छुपने लगी,
हवा अब लाचार है ॥
ढूँढने जब से लगे ,
हैं लोग पीपल पाँव…
याद फिर आने लगे ,
पुरवाईयों के गाँव ..
कैद हैं घर में सभी ,
ले बचपनों की याद ।
खा रहें हैं रोग को ,
रोटी के संग खाद ॥
फेफड़ें जर्जर हुए,
जब करके खाँव खाँव…
याद फिर आने लगे ,
पुरवाईयों के गाँव ..