गीत
सृष्टि कण कण में बसा है गीत का संसार
शब्द की स्वर लहरियों में गीत का श्रंगार
ग्यान में विज्ञान में है,साधकों के ध्यान में है
श्वास में निःश्वास में है गीत का अधिकार
खुली अलकों बंद पलकों में निहित है सादगी में
सुरमइ चम्पइ रंग में गीत के उद्गार
जन्म में है मरण में है त्याग में है वरण में है
हर अधर पर हर नयन में गीत का ही प्यार
पाश में है मुक्ति में है विश्व में है ईश में है
योग ऐर वियोग में है गीत कर्म प्रसार
सुरेशसोनी”शलभ”