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22 Apr 2020 · 1 min read

गीत

‘आराधना’

सौम्य, मंजुल निरख छवि को उठ रही मन भावना,
प्रीति प्रिय की बावरी बन कर रही आराधना।

प्रेम की साकार मूरत खोजती -फिरती रही,
नित नए सपने सँजोती रातभर जगती रही।
द्वार अंतस मूँद पलकें कर रही अब साधना,
प्रीति प्रिय की बावरी बन कर रही आराधना।

जलधि की उत्ताल लहरें छेड़तीं मृदु रागिनी,
भ्रमर कुंतल चूमते मुख सुखद लगती यामिनी।
शबनमी अहसास पाकर गुनगुनाती चाहना,
प्रीति प्रिय की बावरी बन कर रही आराधना।

देख कर तरु पाश लतिका को लजाती हूँ सखी,
चित्त में उन्माद भर शाखा झुकाती हूँ सखी।
नैन में प्रतिमा समाकर मौन करती प्रार्थना,
प्रीति प्रिय की बावरी बन कर रही आराधना।

लालिमा मस्तक सजाकर हाथ रचने आ गयी,
आलता पग में लगा शृंगार करने आ गयी।
यौवना दुलहन बनी वर देखने की कामना,
प्रीति प्रिय की बावरी बन कर रही आराधना।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 2 Comments · 338 Views
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