गीत- सिखाए ज़िंदगी हरपल…
सिखाए ज़िंदगी हरपल नया हर रंग भरती है।
रुलाती है हँसाती है निरालख संग भरती है।।
कभी अभिमान कर खुद पर जलाना और का मत दिल।
यहाँ बदलाव निश्चित है भुलाना वैर की महफ़िल।
कभी छाया कभी कर धूप ज़ादू अंग भरती है।
रुलाती है हँसाती है निरालख संग भरती है।।
रखो अंदाज़ अपनो-सा सुहाना रुत लुभाएगा।
बना हर दोस्त जीवन में गले तुमको लगाएगा।
समझ जिसकी रहे अच्छी सफल हर जंग भरती है।
रुलाती है हँसाती है निरालख संग भरती है।।
जिसे इंसानियत से प्यार हो जाए उठे ऊँचाँ।
हृदय हो पाक जिसका वो सदा अद्भुत रचे ऊँचा।
जो दीवाना उसी के दिल उमंगें सारंग भरती है।
रुलाती है हँसाती है निरालख संग भरती है।।
आर.एस. ‘प्रीतम’