गीत- समय की धूप सर्दी-सी…
समय की धूप सर्दी-सी कभी गर्मी हुआ करती।
उसी को रास सब जिसके हृदय नरमी हुआ करती।।
कभी संकट कभी ख़ुशियाँ सभी क़ुदरत नज़ारें हैं।
मिले जिसको यहाँ जो भी सभी पावन इशारे हैं।
मिलाए चाँद से तुमको हसीं रजनी हुआ करती।
उसी को रास सब जिसके हृदय नरमी हुआ करती।।
हुआ अच्छा कहें ये तो हुनर सच में हमारा है।
बुरा जो हो गया फिर तो कहें क़िस्मत ने मारा है।
यही इंसान की यारों कि बेशर्मी हुआ करती।
उसी को रास सब जिसके हृदय नरमी हुआ करती।।
कभी वर्षा कभी सूखा अगर स्वीकार हो जाए।
ज़माने से हमें गहरा तभी सुन प्यार हो जाए।
सुहाए ज़िंदगी ‘प्रीतम’ तभी धर्मी हुआ करती।
उसी को रास सब जिसके हृदय नरमी हुआ करती।।
आर. एस. ‘प्रीतम’