गीत- बहुत गर्मी लिए रुत है…
बहुत गर्मी लिए रुत है किधर को जा रहे हो तुम।
जवानी की बचो लू से किधर को जा रहे हो तुम।।
क़दम बहके दिशाएँ भूल जाते हैं जवानी में।
ज़रा संभल नये कुछ मोड़ आते हैं जवानी में।
बुरा होगा बिना समझे किधर को जा रहे हो तुम।
जवानी की बचो लू से किधर को जा रहे हो तुम।।
ग़लत राहें लुभाती हैं बहुत जल्दी बड़ा सच है।
सही कुछ देर से समझी यहाँ जाती बड़ा सच है।
बिना संज्ञान के भागे किधर को जा रहे हो तुम।
जवानी की बचो लू से किधर को जा रहे हो तुम।।
नज़र के जाल में फँसकर निकल पाना बहुत मुश्किल।
सुना मँझधार से वापिस निकल आना बहुत मुश्किल।
तरीके होश साहस बिन किधर को जा रहे हो तुम।
जवानी की बचो लू से किधर को जा रहे हो तुम।।
आर. एस. ‘प्रीतम’