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4 Oct 2021 · 1 min read

गीत: जीवन_मृत्यु

न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।

प्रकृति ने हाथ से रचकर
हमें भू-लोक में भेजा।
करोड़ों रश्मियों से
सूर्य के आलोक में भेजा।।

न जाने किस भुवन की ओर
अब प्रस्थान करना है।
न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।।

सृजनकर्ता सभी का ईश्वर
तो एक ही होता।
सभी जीवात्म का छूटा हुआ
घर एक ही होता।।

हजारों रूप ले-लेकर
कलेवर से गुजरना है।
न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।।

किसी की अल्प आयु है
कोई सौ साल तक जीता।
समय के फेर में फँसकर
बड़ी जल्दी सफर बीता ।।

न जाने किस समर पर
युद्धरत होकर उतरना है।
न जाने किस डगर पर
जन्म लेकर
फिर विचरना है।।

– जगदीश शर्मा सहज

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