गीत- जब-जब पाप बढ़े दुनिया में…
जब-जब पाप बढ़ें दुनिया में, लेता प्रभु नव अवतार।
भ्रमित मनुज का दंभ तोड़कर, रचता है नवल विचार।।
तृष्णा बढ़ती नभचर बनता, पाने को सब अधिकार।
मानवता का शीश काटकर, चाहे निज की जयकार।
मगर भूलता इतिहास मूर्ख, माया रचना है हार।
भ्रमित मनुज का दंभ तोड़कर, रचता है नवल विचार।।
अवतार लिया जिसने अनुपम, नूतनता करके स्वीकार।
दीनदयाल वही पालक है, प्राणों का नव आधार।
अग्न बुझाए काँत करे मन, करता सबपर उपकार।
भ्रमित मनुज का दंभ तोड़कर, रचता है नवल विचार।।
जग झूठा है झूठ लगे पर, माया खेले सब खेल।
झूल रहे डिब्बा-डिब्बा सब, समझ न आए पर रेल।
सभी दिखावा करके हारें, सच्चाई सुख का सार।
भ्रमित मनुज का दंभ तोड़कर, रचता है नवल विचार।।
आर. एस. ‘प्रीतम’