गीत- कोई रोया हँसा कोई…
कोई रोया हँसा कोई हटी जब धूल नैनों से।
किसी ने शूल देखे हैं किसी ने फूल नैनों से।।
समय का सच करो स्वीकार मिलता रब लिखेगा जो।
नहीं हासिल हसीं शब हो सदाक़त बद लिखेगा वो।
मगर समझो हवा का रुख सदा माकूल नैनों से।
किसी ने शूल देखे हैं किसी ने फूल नैनों से।।
निराशा छोड़कर प्यारे निकालो भूल का तुम हल।
लगेगा फिर मिला जो भी सही है ये अदब से फल।
निराशा भूलकर देखो ख़ुशी का मूल नैनों से।
किसी ने शूल देखे हैं किसी ने फूल नैनों से।।
लगे आसान पथ ‘प्रीतम’ बढ़ो हँसकर निखारो कल।
इरादे नेक होते जब मिला करती तभी मंज़िल।
हँसो दिल से नज़ारा हर दिखे अनुकूल नैनों से।
किसी ने शूल देखे हैं किसी ने फूल नैनों से।।
आर. एस. ‘प्रीतम’
शब्दार्थ- माकूल- उचित/ठीक, सदाक़त- सच्चाई/हक़ीक़त/गवाही, अदब- तमीज़/शिष्टाचार