गीत- कहो ख़ुद की सुनो सबकी…
कहो ख़ुद की सुनो सबकी यही आदत सुहानी।
अकेले से नहीं बनती कभी कोई कहानी है।।
हवा पानी कि मौसम धूप मिट्टी बीज मेहनत से।
बने तरुवर तने तरुवर बचा ख़ुद को कि आफ़त से।
सभी के साथ से मिलती हृदय को नव रवानी है।
अकेले से नहीं बनती कभी कोई कहानी है।।
मिलो मिलके खिलो सबसे गुलाबों की तरह हरपल।
रचो अपनी इबारत तुम नवाबों की तरह निश्छल।
मुहब्बत से मुहब्बत की इबादत नित सजानी है।
अकेले से नहीं बनती कभी कोई कहानी है।।
उठाओ कर्म का भाला ज़रा फैंकों निशाने पर।
यकीं ख़ुद पर करो पहले करो फिर तुम ज़माने पर।
विजय होगी तेरी ‘प्रीतम’ दुवा सबकी सजानी है।
अकेले से नहीं बनती कभी कोई कहानी है।।
आर. एस. ‘प्रीतम’