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29 Jul 2016 · 1 min read

गीतिका

मुश्किल से ना घवराना तू,
हिम्मत से बढ़ते जाना तू,

औ,कोई लाख अडाये रोड़े,
सबसे ही, अड़ते जाना तू,

साम,दाम या दण्ड,भेद हो,
पग-पग ही बढ़ते जाना तू,

आज नहीं,कल हो जायेगा,
रोज, नया गढ़ते जाना तू,

वो विकास की सीढ़ी,पगले,
तेरी है, चढ़ते जाना तू,

मंजिल मिल जायेगी तुझको,
हिम्मत से बढ़ते जाना तू,

सदा बुजुर्गों के अनुभव को,
शीश झुका,पढ़ते जाना तू,

अगर बुराई, हो हावी तो,
ताकत से लड़ते जाना तू,

रमेश शर्मा”राज”
बुदनी

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