गीतिका
गीतिका-18
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अब जलाना दीप होगा
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जागना होगा हमें गुलशन बचाने के लिये ।
बिजलियाँ तैयार हैं इसको जलाने के लिये ।।
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भौक देते लोग खंजर पीठ में हिचकें नहीं ।
ढूँढना होगा उन्हें सबको दिखाने के लिये ।।२
०
वे नहीं किंचित झिझकते तोड़ देते फूल को ।
श्रम समय लगता बहुत कलियाँ उगाने के लिये ।।३
०
हैं परिस्थितियाँ विकट हर ओर सिलगी आग है ।
लोग कुछ आतुर यहाँ इसको बढ़ाने के लिये ।।४
०
खोजते भँवरे फिरेंं कलियाँ कहाँ पर हैं खिलीं ।
सोचिये कैसे खिलें वे मुस्कुराने के लिये ।।५
०
कोहरा सा घिर रहा है सूझती राहें नहीं ।
सूर्य को लाना पड़ेगा तम हटाने के लिये ।।६
०
जुगनुओं से कब हुआ सोचो उजाला रात में ।
अब जलाना दीप होगा पथ दिखाने के लिये ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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