गीतिका
दीन दुखी के आँसू पोंछे,अतिमानव
कहलाते हैं।
जो देते आँसू औरों को, छल से मन
बहलाते हैं।
सर्वभूत नश्वर धरिणीतल,नहीं सुरक्षा
कवच कोई,
कुछ ज्ञानी भी अज्ञानी भाँति, मन में
द्वेष छिपाते हैं।
सुनिहित स्वार्थ के वशीभूत, मानव के
मनस झरोखे,
नित ताँक-झाँक कर माया को,.प्रायः
निकट बुलाते हैं।
जीवन के अवसान काल में,पल क्षण
नित जाग्रत होते,
ज्ञान सत्य का सतत कराते, भक्ति
सुभाव जगाते हैं।
ईशभक्ति की शक्ति मनुज को,संबल
जीने का सौंपे,
चारु विधाता मनोयोग से, भव से
पार लगाते हैं।
–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.)