गीतिका……. ——————- सत्य के लब देखो सिले हैं।
गीतिका…….
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सत्य के लब देखो सिले हैं।
असत्य के चेहरे खिले खिले हैं।
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हमने सत्य का साथ दिया है पर
देखो सबके होठों पे गिले हैं।
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झूठों की सजावट,प्यार की
बनावट पर मुस्कुराहट मिले हैं।
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हमारा अनुभव आज का है पर
लगता जैसे वर्षों के सिलसिले हैं।
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हर उल्लेख फीकी लगे “पूनम”
भावनाओं में शूलों के काफिले हैं।
@पूनम झा। कोटा, राजस्थान।
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