गीतिका = रोना आता है
गीतिका = रोना आता है
मात्राभार= 24 प्रति पंक्ति
समान्त =आ / पदान्त = रोना आता है
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टूट रहा श्रम का कन्धा ,रोना आता है ;
कानून बना है अन्धा ,रोना आता है ।
लात घूसे जनतंत्र के मंदिर में चलते ;
घोटालों का है धन्धा ,रोना आता है ।
दुःशासन की देन,बढ़ गए भाव अवगुण के ;
इंसान हुआ है मन्दा ,रोना आता है ।
चरित धर्म और शर्म,सब खूँटी पर लटके ;
आचरण हुआ है गन्दा ,रोना आता है ।
सुभाष शेखर भगत ,हैं करते दिलों पर राज ;
अब नेता बना दरिन्दा ,रोना आता है ।
थी धाक हमारी ,थे जादूगर हॉकी के ;
अब उड़ा जोश का परिन्दा ,रोना आता है ।
पग-पग जसाला उग रहे ,अविश्वासी शूल ;
धूर्त हुआ रब का बन्दा ,रोना आता है ।
******सुरेशपाल वर्मा जसाला