गीतिका।सब कुछ तमासा हो गया।
गीतिका।सब कुछ तमासा हो गया ।।
आदमी खुदगर्ज़ प्यासा हो गया ।
आजकल सब कुछ तमासा हो गया ।।
फ़र्ज की होती नही परवाह अब ।
घूस खाना अब बताशा हो गया ।।
प्यार में नस्तर चुभेंगे एक दिन ।
हैं यकीं दिल को दिलाशा हो गया ।
बढ़ रही रिस्तों में नफ़रत, दूरियाँ ।
देखकर ये दिल हताशा हो गया ।।
हो रहे क़ातिल यहाँ गुमनाम सब ।
बेगुनाहों का ख़ुलासा हो गया ।।
मौत के बदले यहा बस मौत है ।
जख़्म नाजुक या जरा सा हो गया ।।
है यहाँ कोमल सभी नापाक दिल ।
पाक दिल पर तो मुँहासा हो गया ।।
हर जुबाने ब्यंग्य रूपी बाण पैने ।
मुँह नही जैसे गड़ासा हो गया ।।
सोंच क्या होगा भला’रकमिश’तेरा ।
जख़्म तेरा तो तराशा हो गया ।।
राम केश मिश्र’रकमिश’