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2 Mar 2018 · 1 min read

गीतिका।मिलन का आ गया अपने पुनः त्योहार आँगन मे ।

===================गीतिका===================

मिलन का आ गया अपने पुनः त्योहार आँगन मे ।
मिटा नफ़रत गले मिलकर करेंगें प्यार आँगन मे ।

बड़ा प्यारा निराला है हमारा पर्व होली का ।
अमीरी का गरीबी का न हो व्यवहार आँगन मे ।

न कुंठित मन मगन उर मे कहीं दुर्भावना पनपे ।
भरेंगें रंग खुशियों का सभी घर द्वार आँगन मे ।

निराशा तम के बंधन सँग बुराई छोड़ तुम आना ।
बसायेंगे मुहब्बत का नया संसार आँगन मे ।

न दुख आये न चिंता हो न भूखा हो न प्यासा हो ।
न हो शंशय न भावों का करें व्यापार आँगन मे ।

न काले का न गोरे का सभी वर्णो के संगम का ।
मिलन सबरंग है होली यक़ीनन यार आँगन मे ।

खिले मुख हर्ष से ‘रकमिश’ बढ़ाये नेह पावनता ।
अबीरों की ग़ुलालों की सजी बौछार आँगन मे ।

रकमिश सुल्तानपुरी

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