गीतिका/ग़ज़ल
मापनी- २,२,२,२,२,२,२,२, पदांत- किया जाता है , समान्त- आन
“गीतिका- गज़ल”
प्रति दिन दान किया जाता है
मान गुमान किया जाता है
जिंदगी चलती नेक राहों पर
चल अभिमान किया जाता है॥
तिल-तिल बढ़ती है बारिकियाँ
जिस पर शान किया जाता है॥
पपिहा पी पी कर पछताए
कलरव गान किया जाता है॥
परिंदे दूर तलक उड़ जाते
हद पहचान किया जाता है॥
पग पग पर चढ़ आ जाए तो
बैठ थकान किया जाता है॥
गफलत हो जाती है गौतम
खुद का मान किया जाता है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी