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21 Jun 2023 · 1 min read

गीतिकाव्य : योग

तन-मन करे निरोग ये, दूर भगाकर रोग।
पौ-फटते ही कीजिए, खुली हवा में योग।।

परम शाँति आनंद, योग करके मिलते हैं।
उजड़े गुलशन घोर, सुरभि लेकर खिलते हैं।।
मुखमंडल देता खिला, देख लगाकर भोग।

भागदौड़ में आज, योग मानव भूला है।
रखता माया मोह, इसी में बस फूला है।।
रोगों की गठरी लिए, करे ख़ुशी का सोग।

समय समझ का मेल, रंग भरता जीवन में।
योग शौक़ की राह, उमंगें लाती मन में।।
चलें योग की ओर, अक़्ल लगाकर लोग।

योग भूलकर आप, जोड़िये कितना ही धन।
लगा भयंकर रोग, बना दे तुम्हें अकिंचन।।
समझो ‘प्रीतम’ बात, योग करते तुम रहना।
आदत अच्छी धार, सीख सबसे यह कहना।।
खुशहाली आए तभी, टूटे आलस जोग।

#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना

Language: Hindi
125 Views
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