*गीता की कर्म-मूलक दृष्टि के सक्रिय प्रवक्ता पंडित मुकुल शास्त्री जी : एक प्रवचन
गीता की कर्म-मूलक दृष्टि के सक्रिय प्रवक्ता पंडित मुकुल शास्त्री जी : एक प्रवचन
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मुरादाबाद 5 सितंबर 2021,रविवार।स्थानीय रामलीला ग्राउंड लाजपत नगर में स्थित एक छोटे से कक्ष में दोपहर ग्यारह बजे पंडित मुकुल शास्त्री जी की गीता-कथा सुनने का सुयोग उपस्थित हुआ । दो – ढाई सौ लोग स्त्री पुरुष इस अवसर पर एकत्रित थे। पंडित जी ने कथा का आरंभ इस बात से किया कि गीता न तो मृत्यु के बाद सुनने तक सीमित रहनी चाहिए और न ही मरणासन्न व्यक्ति के लिए इसकी उपादेयता सीमित है। अपितु गीता की सार्थकता तो जीवन में सक्रिय और तेजस्वी भूमिका निभाने में मग्न व्यक्ति के लिए है । अतः गीता कर्म-पथ पर व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए संबल प्रदान करती है और उसका मार्गदर्शन करती है। इसलिए गीता हर क्षण ,हर दिन और हर परिस्थिति में पढ़े जाने के योग्य है ।
पंडित जी की आवाज में गंभीरता भी थी और वजन भी था । एक-एक शब्द नापतोल कर उनके श्रीमुख से प्रकट हो रहा था । आयु अधिक नहीं थी लेकिन जिस प्रौढ़ावस्था को उन्होंने अपने ज्ञान से प्राप्त किया हुआ था ,वह आकर्षित करने वाली स्थिति थी । पंडित जी सजगता के साथ बीच-बीच में रामचरितमानस की चौपाइयों को मधुर कंठ से सुनाते थे और वातावरण में एक सम्मोहन – सी स्थिति उत्पन्न हो जाती थी । यही हाल जब आप मूल संस्कृत में गीता के श्लोकों को श्रोताओं के सामने व्यक्त करते थे ,तब भी होता था।
कहने का तात्पर्य यह है कि आधुनिक परिप्रेक्ष्य में गीता की उपादेयता पंडित मुकुल शास्त्री जी के श्रीमुख से सुनने को मिली और साथ ही यह भी पता चला कि गीता के प्रवक्ता गुदड़ी के लाल की तरह स्थान – स्थान पर नगर – नगर और महानगर में विराजमान हैं, जिन्हें अगर राष्ट्रीय क्षितिज पर उपयुक्त मंच मिल जाए तो अपनी यशकीर्ति की पताका तो फहराएंगे ही ,वृहद परिप्रेक्ष्य में भी जनता को उसका लाभ मिल सकेगा। पंडित मुकुल शास्त्री जी की चाल – ढाल के साथ-साथ उनकी वक्तव्य-शैली में भी एक फुर्तीलापन है । वह जनता को यह सलाह देने का साहस रखते हैं कि घर में गीता रखने मात्र से काम नहीं चलेगा और उसे केवल पंडित जी से पढ़वाने से भी काम नहीं होगा अपितु स्वयं बैठकर पढ़ना पड़ेगा। अर्थ को समझना होगा और तब जीवन में नूतन प्रकाश का उदय होगा । पंडित मुकुल शास्त्री जी का प्रवचन शिक्षक दिवस की एक उपलब्धि रही । उनको हृदय से प्रणाम।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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