गिलहरी
सामने वाली दीवार,
पर दो पाँव पर बैठी,
सूखी रोटी का टुकड़ा,
कुतरती नन्हीं गिलहरी।
उभर आई अनायास,
स्मृति में महादेवी वर्मा,
की “गिल्लू” वाली छवि,
और लेखनी मचल उठी।
टुकुर – टुकुर, गोल – गोल,
सतर्क आँखों से तकती,
अगले दो पाँव उठा कर,
हाथों सा प्रयोग करती।
श्याम – श्वेत धारीदार,
काया “रामायण” में,
राम – सेतु निर्माण में,
निष्काम भाव से जुटी,
श्रीराम की कृपा – पात्र।
कर्महीन मनुष्यों के मध्य,
कर्म की महत्ता दर्शाती,
वो सजग, चतुर, चचंल,
फुर्तीली ; न जाने क्यों.?
भली लगती गिलहरी।
दिनांक :- ०३/०३/२०२४.