गिरे ऐसे चाहत मे(गज़ल)
गिरे ऐसे चाहत में/मंदीप
गिरे ऐसे चाहत में तुम्हारी दोबारा उठ न सके,
हाल क्या से क्या हुआ ना जी सके ना मर सके।
कोसिसे करता दिल मेरा तुम्हे बुलाने की,
यादो को तुम्हारी हम मिटा ना सके।
सह गए हर सितम तुम्हारा आखरी समज कर,
दी चोट ऐसी अबकी बार हम सह ना सके।
दिया हर कदम पर घाव तुमने ऐसा,
घाव हमारा किसी को दिखा ना सके।
बता दिया”मंदीप”दर्द बातो ही बातो में,
क्यों आज हम अपने आँसु छुपा ना सके।
मंदीपसाई