“गिराने को थपेड़े थे ,पर गिरना मैंने सीखा ही नहीं ,
“गिराने को थपेड़े थे ,पर गिरना मैंने सीखा ही नहीं ,
डराने को गहरे अँधेरे थे , पर डरना मैंने सीखा ही नहीं l
बड़ी शिद्दत की, उसने मुझे हराने की ,
रण छोड़ दू कैसे ,
पीठ दिखाना ,मैंने सीखा ही नहीं l”
“नीरज कुमार सोनी”
जय श्री महाकाल 🕉️