गिरते-गिरते – डी के निवातिया
गिरते-गिरते
हम कहाँ से कहाँ आ गए गिरते-गिरते,
जग सारे में सारे छा गए गिरते-गिरते !!
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काबिल जरा न थे जो जहन्नुम के भी,
जन्नत यहां पर पा गए गिरते-गिरते !!
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इज़्जत से, लहजे से, दिलो से भी गिरे,
बेगैरत शोहरत कमा गए गिरते-गिरते !!
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कोई नजरों से गिरा तो कोई उसूलो से,
गिरने में भी लुफ्त ठा गए गिरते-गिरते !!
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गिरने के हुनर में इतने लायक निकले,
वतन भी नोचकर खा गए गिरते-गिरते !!
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नाम और शोहरत से गए तो क्या हुआ,
बेशुमार दौलत तो पा गए गिरते-गिरते !!
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गिरने की ऐसी आदत पाली कहते ‘धरम’
गिरने में भी क्रांति ला गए गिरते-गिरते !!
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डी के निवातिया